आधुनिक काल में भारत का इतिहास
कल्पना कीजिए कि सत्रहवीं सदी का कोई व्यक्ति किसी करिश्मे से पुनः जीवित होकर आज की दुनिया में पहुँचता है । उसे आज की दुनिया उसकी अपनी 17 वीं सदी की दुनिया से काफी बदली हुई नजर आएगी । उसे अपने समय की कुछ इमारतें आज भी खड़ी दिखाई दे सकती हैं । उनमें कुछ इमारतें खंडहर के रूप में दिखेंगी , तो कुछ साबुत भी दिखेंगी । लेकिन अधिकांश चीजें उसे एकदम बदली हुई दिखाई देंगी । वह कई नए नगरों और शहरों को देखेगा । वह यह भी देखेगा कि उनके जमाने के शहरों से आज के शहरों का स्वरूप भिन्न है । भू - दृश्य भी उसे बदला हुआ दिखाई देगा , क्योंकि उसके जमाने में न तो आज जैसे कारखाने थे और न ही पक्की सड़कें । उसके समय के मकान भी आज के जैसे नहीं थे । सड़कों पर उसे तरह - तरह की ऐसी गाड़ियाँ दिखाई देंगी , जिनकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी । आसमान में उड़ते हवाई जहाज को और पटरियों पर दौड़ती रेल - गाड़ी को देखकर वह चकित रह जाएगा । दुकानों में उसे ऐसी चीजें दिखाई देंगी , जिनको उसने पहले कभी नहीं देखा था । उनका इस्तेमाल करना भी उसे सीखना होगा । गाँवों में उसे खेती करने के कुछ नए तरीके देखने को मिलेंगे । कुछ ऐसी फसलें भी हो सकती हैं जिन्हें उसने पहले कभी नहीं देखा था । उसी प्रकार , समाज , राजनीति और संस्कृति में भी उसे आश्चर्यजनक परिवर्तन नजर आएगा । कहा जा सकता है कि लगभग सब कुछ बदला हुआ दिखाई देगा । यहाँ तक कि लोगों की भाषा भी उसे अपनी भाषा से अलग महसूस होगी । इस तरह वह अपने को एक ऐसी बदली हुई दुनिया में पायेगा जिसकी उसने सपने में भी कल्पना नहीं की होगी । वास्तव में दुनिया ने दो - तीन शताब्दियों में परिवर्तनों के कई दौर देखे । पिछली शताब्दियों में हुए बदलावों को हम इतिहास के माध्यम से जान पाते हैं ।
इतिहास में तारीख का महत्व
पहले के लोगों को यह धारणा बनी रहती थी कि इतिहास एक नीरस विषय है । जिसमें तारीखों और वर्षों को याद करना पड़ता है । कौन राजा किस युद्ध में मारा गया , कौन सा युद्ध कब हुआ ? इन्हीं सब चीजों पर आपस में खूब चर्चाएँ होती रहती थी । आम लोगों की यही समझ थी कि इतिहास तारीखों का पर्याय है । क्या यह बात इतिहास के बारे में सही है ?
वास्तव में इतिहास अलग - अलग समय पर होनेवाले परिवर्तनों के संबंध में बताता है । अतीत में चीजें किस तरह की थीं और अब उनमें क्या बदलाव आये हैं । अतीत और वर्तमान की तुलना के क्रम में हम तिथिवार घटनाओं का विवरण ढूँढते दैनिक जीवन में हम अपने आसपास कई वस्तुओं को देखते हैं , लेकिन प्रत्येक वस्तु की ऐतिहासिकता को लेकर मन में कोई प्रश्न नहीं उठता है । हमें लगता है कि ये चीजें लम्बे अरसे से ऐसी ही होंगी । हालाँकि कभी - कभी हम कुछ चीजों को देख कर हैरत में पड़ जाते हैं । उन्हें देखकर खुशी महसूस होती है । मन में उस वस्तु की ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा भी उत्पन्न होती है । उदाहरण के रूप में बस स्टैंड की एक दुकान पर किसी व्यक्ति को चाय पीते देख इस तथ्य पर हैरानी हो सकती है कि दुनिया में लोगों ने चाय पीना कब से शुरू किया होगा ? सबसे पहले कहाँ और कैसे चाय की शुरुआत हुई होगी ? आकाश में उड़ते हवाई जहाज को देख कर भी मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि लोगों ने हवाई सफर की शुरुआत कब से की होगी ? हवाई जहाज जब नहीं था तो लोग दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक लंबी दूरी कैसे तय करते होंगे ? गरमी के दिनों में पंखा हमें काफी सुकून देता है । इसकी शुरुआत के पीछे भी एक कहानी छुपी है । घरों में रोशनी के लिए बिजली के बल्ब को जलते देखकर भी प्रश्न उठ सकता है कि इसे किसने और कब बनाया होगा ? जब यह नहीं था , तब लोग घरों में रोशनी के लिए क्या प्रबंध करते होंगे ? पटरियों पर सरपट दौड़ती रेलगाड़ी को देख कर भी मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि हजारों लोग तब कैसे यात्रा करते होंगे ? आपकी पाठ्य पुस्तक कागज पर छपी है । जब कागज का आविष्कार नहीं हुआ था , तब किताबें कैसे लिखी जाती होंगी ? उपर्युक्त सभी प्रश्न हमें समय के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं । समय को सदैव साल या महीने की बंदिशों में नहीं बाँध सकते । कई ऐसी घटनाएँ इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं , जिसके लिए कोई निश्चित तिथि निर्धारित नहीं की जा सकती है । भारत पर कई सदियों तक अंग्रेजों का शासन रहा । ब्रिटिश शासन की स्थापना का कोई एक दिन निश्चित नहीं है । इसी तरह अगर हम राष्ट्रीय आंदोलन की बात करते हैं , तो यह बताना कठिन है कि राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत किस तारीख से हुई थी । वास्तव में ये चीजें लम्बे समय तक चलीं । इसे एक निश्चित तिथि में नहीं बताया जा सकता । इन परिवर्तनों को स्पष्ट करने के लिए हम अवधि का जिक्र कर सकते हैं । अवधि में एक कालखंड को शामिल किया जाता है , जब बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हुई थी । इन तथ्यों के बावजूद हम देखते हैं कि लोग इतिहास को तारीखों से जोड़ कर देखने की कोशिश करते हैं । इसका कारण यह है कि पहले युद्ध और बड़ी घटनाओं के विवरण को ही इतिहास समझा जाता था । इस इतिहास में शासकों और उनकी नीतियों के बारे में विस्तार से चर्चा की जाती थी । उदाहरण के तौर पर राजा का राज्याभिषेक , उसका वैवाहिक जीवन , युद्ध एवं सीमा विस्तार , उपलब्धियाँ , उसकी मृत्यु और उत्तराधिकार को इतिहास का विषय माना जाता था । इस स्थिति में इन घटनाओं की निश्चित तारीख बताने में कोई परेशानी नहीं है । इस प्रकार इतिहास में तिथियों का विशेष महत्व बरकरार रहता है ।
विज्ञापनों का रूचियों पर प्रभाव
विज्ञापन काफी समय से हमारी पसंद - नापसंद को प्रभावित करता रहा है । बीते दिनों के विज्ञापनों को देख कर यह समझा जा सकता है कि नये उत्पादों के लिए बाजार कैसे तैयार किया गया । समाज में लोगों की रुचियां कैसे बदलीं । 1922 ई . में लिप्टन चाय के लिए तैयार किये गये इस विज्ञापन में यह संकेत देने की कोशिश की गयी कि विश्व के शाही लोग लिप्टन चाय को पसंद करते हैं ।
तारीखें क्यों हो जाती हैं महत्वपूर्ण ?
हम अपने परिवार में देखते हैं कि कुछ तारीखों को अन्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है । इसका कारण यह है कि उस तिथि से परिवार के सदस्यों की जिंदगी की कोई महत्वपूर्ण घटना या यादें जुड़ी होती है । उदाहरण के तौर पर किसी का जन्मदिन , विवाह की सालगिरह हो या पुण्यतिथि । इन घटनाओं से संबंधित तिथि को परिवार के लोग विशेष रूप से याद करके रखते हैं । तिथि स्वयं अपने आप में महत्वपूर्ण नहीं होती है , लेकिन जब उस तिथि से किसी की कुछ याद जुड़ जाती है , तो वह तिथि यादगार बन जाती है । जब हम अध्ययन का विषय बदल देते हैं , तो हमारा ध्यान नये मुद्दों पर चला जाता है । इस परिस्थिति में महत्वपूर्ण तारीखें भी बदल जाती हैं । इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है । भारत में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा लिखे गये इतिहास में भारत के सभी गवर्नर - जनरलों के शासन काल की विस्तृत चर्चा की गयी है । इसमें भारत के प्रथम गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स से शुरू होकर अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन तक की चर्चा मिलती है । अलग - अलग अध्यायों में हमें दूसरे गवर्नर जनरलों अथवा वायसरायों के बारे में पढ़ने को मिलता है । इसमें लॉर्ड कार्नवालिस , लॉर्ड मिंटो , लॉर्ड हेस्टिंग्स , विलियम बेंटिंक , डलहौजी , मेटकॉफ , एलनबरो , कैनिंग , लॉरेंस , नार्थब्रुक लिटन , रिपन , डफरिन , कर्जन , हार्डिंग ,इरविन , लिनलिथगो , वेवेल के बारे में भी पढ़ते हैं । पढ़ते समय ऐसा महसूस होता है कि गवर्नर - जनरलों और वायसरायों कि एक लंबी श्रृंखला रही है । आधुनिक इतिहास की इन पुस्तकों में सभी तिथियों का महत्व इन अधिकारियों की गतिविधियों , नीतियों और उपलब्धियों के आधार पर तय किया जाता है । ऐसा प्रतीत होता कि इन अधिकारियों के जीवन से जुड़ी चीजों के अतिरिक्त कोई अन्य विषय उतना महत्वपूर्ण नहीं है , जिसके बारे में जानना जरूरी है । क्या हम अधिकारियों की नीतियों एवं गतिविधियों से तत्कालीन समाज की आर्थिक , सामाजिक , धार्मिक व जीवन के अन्य पहलुओं की सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ? क्या उस युग के इतिहास को एक नये ढंग से नहीं लिखा जा सकता है ? वर्तमान इतिहास लेखन में समाज के सभी पहलुओं की जाँच - पड़ताल की जाती हैं ।
आधुनिक भारत के भौगोलिक भू-भाग
भारत एक विशाल भौगोलिक विस्तार वाला देश है । उत्तर में यह हिमालय के ऊँचे शिखरों से घिरा है । पश्चिम में अरब सागर , पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा दक्षिण में हिंद महासागर भारतीय प्रायद्वीप को घेरे हुए हैं । भारत का क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है । उत्तर में काश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक इसका विस्तार लगभग 3,200 किमी है । पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम में कच्छ तक यह विस्तार लगभग 2,900 किमी का है । भारत आज चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है ।
कैसे तय की जाती हैं अवधियाँ ?
इतिहास में बड़े - बड़े कालखंडों की घटनाएँ दर्ज होती हैं । इन काल खंडों के निर्धारण पर ज्यादातर इतिहासकारों की सहमति भी मिल चुकी है । इतिहास को कालखंडो में विभाजित करने से हमें इसके केंद्रीय तत्व को समझने में आसानी होती है । इसलिए इतिहास को किसी प्रवृत्ति व लक्षण के आधार पर छोटे - छोटे कालखंडों में बाँटा जाता है । ये लक्षण कुछ विशेषताओं के द्वारा दर्शाएँ जाते हैं । इनमें एक अवधि से दूसरी अवधि के बीच आए परिवर्तनों के बारे में जानकारियाँ भी मिलती हैं । जेम्स मिल का मानना था कि सभ्यता के मामले में सभी एशियाई देश यूरोप से पिछड़े हैं । उनकी धारणा थी कि भारत में अंग्रेजों के आगमन से पूर्व यहाँ हिंदू और मुस्लिम तानाशाहों युग को का शासन था । समाज में धार्मिक टकराव , जातिगत बंधन और अंधविश्वासों की भरमार थी । मिल के अनुसार ब्रिटिश शासन के माध्यम से ही भारत सभ्यता के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है । इसके लिए आवश्यक था कि भारत में यूरोपीय शिष्टाचार , कला , संस्थाओं और कानूनों को लागू किया जाये । मिल का सुझाव था कि भारत के संपूर्ण भू - भाग पर अंग्रेजों को अधिकार जमा लेना चाहिए ताकि भारतीय जनता को ज्ञान और सुखी जीवन प्रदान किया जा सके । उनका मानना था कि भारत का विकास अंग्रेजों की सहायता के बिना संभव नहीं है । यह साम्राज्यवादी दृष्टिकोण है । इतिहास लेखन की यह धारणा इस तथ्य पर आधारित थी कि अंग्रेजी शासन भौतिक प्रगति और सभ्यता का प्रतीक है । ब्रिटिश शासन से पहले का युग अंधकारमय था । क्या इस प्रकार की धारणा को स्वीकार किया जा सकता है ? इतिहास के किसी धार्मिक आधार पर हिंदू या मुसलमान दौर के रूप में बताया जा सकता है ? क्या हिंदू दौर में मुसलमानों का और मुस्लिम युग में हिंदुओं का अस्तित्व नहीं था ? क्या इन दौरों में कई तरह के धर्म एक साथ नहीं चलते थे ? किसी युग को सिर्फ उस समय के शासकों के धर्म के अनुसार तय करने की क्या आवश्यकता है ? ऐतिहासिक तथ्य यह है कि प्राचीन भारत के सभी शासकों का धर्म कभी एक नहीं रहा । किसी ने सनातन धर्म की पद्धति को स्वीकारा , तो किसी ने महात्मा बुद्ध की नीतियों को अपनाया , तो किसी ने महावीर जैन के धर्म के संदेशों का अनुपालन किया । अंग्रेजों द्वारा सुझाए गए वर्गीकरण को दरकिनार कर बहुत से इतिहासकार भारतीय इतिहास को सामान्यतः प्राचीन , मध्यकालीन तथा आधुनिक काल में बाँटते हैं । इस विभाजन की भी अपनी समस्याएँ हैं । इतिहास को काल खंडों में बाँटने का तरीका भी पश्चिम की देन है । पश्चिम में आधुनिक काल को लोकतंत्र , विज्ञान , तर्क , मुक्ति और समानता का युग माना जाता है । जिसमें आधुनिकता की ताकतों का तेजी से विकास हो रहा है । मध्यकालीन समाज के बारे में उनकी धारणा यह थी कि आधुनिक समाज की इन विशेषताओं का वहाँ घोर अभाव था । क्या हम अपने अध्ययन के लिए आधुनिक काल की इस अवधारणा को बिना सोचे - समझे स्वीकार कर सकते हैं ? ब्रिटिश शासन काल में भारतीय लोगों के पास समानता , स्वतंत्रता एवं मुक्ति के एहसास का अभाव था । साथ ही यह आर्थिक विकास और प्रगति का दौर भी नहीं था । ज्यादातर इतिहासकार ब्रिटिश शासन के दौर को औपनिवेशिक युग कहते हैं ।
औपनिवेशिकता क्या है ?
इस पाठ्य पुस्तक में आप भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना के बारे में पढ़ेंगे कि उन्होंने किस प्रकार स्थानीय नवाबों और राजाओं को गद्दी से उतार कर शासन पर कब्जा जमाया । अंग्रेज भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आये थे , लेकिन धीरे - धीरे उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था और शासन पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया । अपने सारे खर्चों की पूर्ति के लिए उन्होंने राजस्व की वसूली की । अपनी आवश्यकता की चीजों को सस्ती कीमतों पर खरीदा । उन्होंने निर्यात के लिए व्यावसायिक एवं महत्वपूर्ण फसलों की खेती के लिए किसानों को बाध्य किया । हम इन प्रयासों के कारण आए सामाजिक एवं आर्थिक बदलावों को जानने का प्रयास करेंगे । ब्रिटिश शासन के कारण भारत की मूल्य - मान्यताओं और पसंद - नापसंद , रीति - रिवाजों और तौर - तरीकों में हुए परिवर्तनों को भी समझेंगे । जब एक देश में दूसरे देश के प्रभाव से राजनीतिक , आर्थिक , सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन होते हैं , तो इस प्रक्रिया को औपनिवेशीकरण कहा जाता है । इसमें शक्तिशाली देश कठपुतली सरकार के द्वारा कमजोर देश पर शासन करता है ।
आधुनिक ऐतिहासिक स्रोत
आधुनिक युग में ऐतिहासिक स्रोतों का अंदाजा लगाना बहुत कठिन काम है । आज हमारी नजर जिधर उठती है , हमें ऐतिहासिक स्रोतों की भरमार नजर आती है । किले , मकबरे , शिलालेखों , विदेशी यात्रियों की कृतियाँ , पांडुलिपियाँ , मूर्तियाँ बड़ी संख्या में मौजूद है । इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान सरकारी रिकॉर्ड रखने की परंपरा की शुरुआत की । इतिहासकारों के लिए यह सरकारी रिकॉर्ड उस युग की जानकारी प्राप्त करने का एक सशक्त माध्यम है । उनका तर्क था कि चीजों को लिखना बहुत जरूरी है । उन्होंने प्रत्येक निर्देश , योजना , नीतिगत फैसले , सहमति और जाँच की परिभाषाओं को स्पष्ट रूप से लिखना जरूरी माना । बाद में कोई भी व्यक्ति इन चीजों का अध्ययन आसानी से कर सकता था । इस कारण ज्ञापन , टिप्पणी और प्रतिवेदन पर आधारित शासन की नयी कार्य संस्कृति की शुरुआत हुई । अंग्रेजों ने इन सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों और पत्रों को सँभालकर रखना जरूरी समझा । इसके लिए उन्होंने सभी शासकीय संस्थानों में अभिलेख कक्ष बनवाए । तहसील के दफ्तर , क्लेक्टरेट , कमीशनर के कार्यालय प्रांतीय सचिवालय , कचहरी सभी के अपने रिकॉर्ड रूम बनाये गए । महत्वपूर्ण दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए अभिलेखागार और संग्रहालय जैसे संस्थान भी स्थापित किये गए । 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ में प्रशासन की एक शाखा दूसरी शाखा के पास भेजे गए पत्रों और ज्ञापनों को आप आज भी अभिलेखागारों में देख सकते हैं । जिला अधिकारियों द्वारा तैयार किए गए नोट्स और रिपोर्ट को पढ़ा जा सकता है । बड़े अधिकारियों द्वारा प्रांतीय अधिकारियों को भेजे गये निर्देश और सुझावों को भी देखा जा सकता है । 19 वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में इन दस्तावेजों की नकलें सावधानीपूर्वक बनायी जाती थी । उन्हें खुशनवीसी के विशेषज्ञ लिखते थे । खुशनवीस या सुलेखनवीस ऐसे लोग थे , जो बहुत सुंदर ढंग से चीजें लिखा करते थे । इस तकनीक की सहायता से सरकारी विभागों की कार्रवाइयों के दस्तावेजों की कई प्रतियाँ बनायी जाने लगी । आधुनिक युग में अब रिकॉर्ड को डिजिटलाइज्ड करने की शुरुआत हो गयी है ।ब्रिटिश काल में जब नयी दिल्ली का निर्माण हुआ , तो राष्ट्रीय संग्रहालय और राष्ट्रीय अभिलेखागार को वायसराय के निवास स्थान के नजदीक बनाया गया । इससे स्पष्ट होता है कि अंग्रेज इन दोनों संस्थानों को कितना महत्वपूर्ण मानते थे ।
सर्वेक्षण का प्रचलन
ब्रिटिश शासन के दौरान सर्वेक्षण को काफी अहम माना गया । अंग्रेजों की सोच थी कि देश पर सही ढंग से शासन चलाने के लिए सर्वेक्षण के माध्यम से हर प्रकार की जानकारी एकत्र करना आवश्यक है । 19 वीं सदी के प्रारंभ में भारत का नक्शा तैयार करने के लिए बड़े स्तर पर सर्वेक्षण कराये गये । ग्रामीण स्तर पर राजस्व सर्वेक्षण किये गये । इसके माध्यम से धरती की प्रकृति मिट्टी की गुणवत्ता , वहाँ मिलनेवाले पेड़ - पौधों और जीव - जंतुओं , फसलों और स्थानीय इतिहास की जानकारी हासिल की जाती थी । अंग्रेजों की धारणा थी कि किसी इलाके पर शासन चलाने के लिए इन बातों की जानकारी जरूरी होती है । 19 वीं सदी के अंतिम दशकों से प्रत्येक दस वर्ष में जनगणना की जाने लगी । इसके तहत देश के सभी प्रांतों में रहनेवाले लोगों की संख्या , उनकी जाति , व्यवसाय आदि के बारे में जानकारी प्राप्त की गयी । इसके अतिरिक्त वानस्पतिक सर्वेक्षण , प्राणि - वैज्ञानिक सर्वेक्षण , पुरातात्विक सर्वेक्षण , वन सर्वेक्षण जैसे कई अन्य सर्वेक्षण भी किये गये थे ।
इसे भी जानें स्वतंत्र भारत में भी अंग्रेजों द्वारा शुरू किये गये जनगणना की नीति का अनुसरण किया गया । आज भी दशक के पहले वर्ष में देश भर में जनगणना की जाती है । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में 1951 , 1961 , 1971 , 1991 , 2001 और 2011 में जनगणना की गयी है ।
अधिकृत रिकॉर्ड्स
रिकॉर्ड्स से तात्पर्य उन अभिलेखों से होता है जिनका लिखित विवरण एवं चित्र सरकारी दफ्तरों में सुरक्षित रहता है । रिकॉर्ड्स के विशाल भंडार से काफी जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती हैं , लेकिन इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा कि ये सभी सरकारी रिकॉर्ड हैं । इन रिकॉर्डों से हमें सरकारी अफसरों की सोच , उनकी विशेष दिलचस्पी और वे किन चीजों को सुरक्षित रखना चाहते थे , इसके बारे में जानकारी प्राप्त होती है । हालाँकि इन रिकॉर्ड्स से हमें ये पता नहीं चलता कि देश के दूसरे लोग क्या महसूस करते थे और उनकी कार्रवाईयों की क्या वजह थी ? इसकी जानकारी हमें अन्य स्रोतों से जानकारी हासिल करनी होगी । हालाँकि दूसरे स्रोतों की कोई कमी नहीं है , लेकिन सरकारी रिकार्ड्स की तुलना में उसे तलाश करना थोड़ा कठिन काम है ।
इस संदर्भ में लोगों की डायरियाँ , तीर्थ यात्राओं और यात्रियों के संस्मरण , महत्वपूर्ण लोगों की आत्मकथाएँ और स्थानीय बाजारों में बिकने वाली लोकप्रिय पुस्तक - पुस्तिकाएँ महत्वपूर्ण हो जाती हैं । छपाई तकनीक के प्रसार के साथ अखबारों का प्रकाशन प्रारंभ हो गया । विभिन्न मुद्दों पर जनता विचार - विमर्श और बहसें करने लगी । नेताओं और सुधारकों ने अपने विचारों को फैलाने के लिए लिखा । कवियों और उपन्यासकारों ने भी अपनी भावनाओं को लेखन के माध्यम से व्यक्त किया । इसके बावजूद हमें साधारण जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के बारे में जानकारी हासिल करने में परेशानी होती है । हमारी जानकारी के सभी स्रोत पढ़े - लिखे लोगों द्वारा रचे गये हैं । हम यह पता नहीं लगा सकते कि आदिवासियों , किसानों , खदान में काम करनेवाले मजदूरों अथवा सड़कों पर जीवन बितानेवाले गरीब लोगों के अनुभव कैसे थे ? अगर हम थोड़ी और कोशिश करें तो इस बारे में अधिक जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं ।
References :- @NCERT
Bibliography :- आधुनिक भारत (8)
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